इस नए जमाने में कुछ पुरानी सी बात हो,
सवेरा आए ऐसे, ओस की बूंदे धूप के साथ हो,
खिलखिलाती धूप झाँके खिड़कियों से यूँ,
के दोपहर की तपिश हल्की ठंडक के साथ हो।
चिड़ियों की चहचहाहट से दिन की शुरुआत हो,
ग़ज़ल भरी शामों को चाय की प्याली का साथ हो,
रातों की आगोश में, माँ के आँचल का एहसास हो,
पुरानी यादों की महक हो दीवारों पर, हर लम्हा जैसे खास हो।
कभी उब जाऊँ बाहरी दुनिया से,
तो एक सुकून भरी जगह इस रूह के भी पास हो,
Beautiful! Soothing! I could picturise it, feel it.
ReplyDelete